भारतीय त्योहारों की एक सबसे बड़ी खासियत यह होती है, कि प्रत्येक त्यौहार के साथ उससे जुड़ा कोई न कोई दूसरा उत्सव अवश्य मनाया जाता है।

पूरे संसार में भाई बहन से अधिक गहरा रिश्ता कोई दूसरा नहीं हो सकता, क्योंकि यही वह रिश्ता है जिसमें दोनों एक दुसरे के लिए अपने प्राण न्योछावर करने के लिए भी तैयार रहते है।

बहन ही होती है जो भाई को माँ बाप की डांट से बचाती है, उसको सबसे छुपकर उसकी शैतानियों में सहायता करती है।

भैया दूज एक ऐसा अवसर है जो  भाई-बहनों  के मध्य  शाश्वत प्रेम को परिभाषित कर सकता है। बहन अपने भाई के लिए उपवास रखती हैं

यह अद्भुत त्योहार एक महत्वपूर्ण अवसर है जहां बहनें अपने प्यारे भाई की लंबी उम्र, कल्याण एवं समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।

भाई दूज का त्यौहार भारत, नेपाल एवं अन्य देशों के हिंदुओं के बीच विक्रम संवत हिंदू के कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष  की द्वितीया तिथि पर मनाया जाता है।

इस त्यौहार के साथ ही दिवाली के पांच दिन के रौशनी के महोत्सव का समापन होता है। भारत के दक्षिणी भाग में इसे यम द्वितीया के नाम से जाना जाता है।

भाई दूज के त्योहार का एक शाब्दिक अर्थ जुड़ा हुआ है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है- “भाई” एवं  “दूज”, अमावस्या के बाद का दूसरा दिन जो नए चन्द्रमा का समय शुरू होता है।

सभी महत्वपूर्ण भारतीय त्योहारों की तरह, भाई दूज से भी जुड़ी एक कहानी है जो इस त्यौहार के महत्व को समझती है।

इस शुभ दिन को मनाने से संबंधित कुछ हिंदू पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक किवदंती के अनुसार नरकासुर का वध करने के बाद भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गए थे।

उनकी बहन ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया एवं  फूलों तथा मिठाइयों के साथ  इस अवसर को वास्तव में विशेष बना दिया।

सुभद्रा ने अपने भाई कृष्ण के माथे पर  “तिलक”  लगाया तभी से  “भाई दूज” का त्यौहार मनाने की शुरुआत हुई। बहने अपने भाइयों को इसी याद में तिलक लगाती हैं।