शारदीय नवरात्र की धूम पूरे भारत वर्ष में होती है। परन्तु बंगाल के लिए दुर्गा की आराधना से बड़ा कोई उत्सव नहीं है। पूरा बंगाल देवी दुर्गा की भक्ति के रंग में रंग जाता है।
माता के द्वारा महिषासुर से युद्ध एवं वध करके संसार को आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस उत्सव का आरम्भ महालया नवरात्री के पहले दिन से होता है।
The Begining
दुर्गा पूजा का आरम्भ 1757 में हुए प्लासी युद्ध से भी जोड़कर देखा जाता है। इससे सम्बंधित पेंटिंग राजा नव कृष्णदेव के महल में भी लगी थी।
Myth
दानवो से युद्ध कर देवी ने उन्हें परास्त किया तब सभी देवो ने मिलकर देवी के विभिन्न रूपों की आराधना की जो नवरात्री का पर्व बना।
Rituals
महोत्सव हिन्दू देवी माता दुर्गा की पूजा पर आधारित होता है। जिन्हें उनके चार बच्चों कार्तिक, गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ 10 भुजाओं वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।
Chokkhu Daan
यह परंपरा भी प्राचीन समय से चली आ रही है। चोखूदान देवी को आँखों की भेट करना। संपूर्ण चाला बनाने में 3 से 4 महीने का समय लगता है।
Do Puja
इस दोनों ही तरह की पूजा में रीति-रिवाज के अलावा सब कुछ बिल्कुल अलग होता है। दो अलग अलग दुर्गा पूजा से अर्थ है, एक जो बहुत बड़े स्तर पर दुर्गा पूजा मनाई जाती है, जिसे पारा कहा जाता है।
और दूसरा बारिर जो घर में मानाई जाती है। पारा का आयोजन पंडालों और बड़े-बड़े सामुदायिक केंद्रों में किया जाता है। वहीं दूसरा बारिर का आयोजन कोलकाता के उत्तर और दक्षिण के क्षेत्रों में किया जाता है।
Ashtami Pushpanjali
यह त्योहार के आठवें दिन बनाया जाता है. इस दिन सभी लोग दुर्गा को फूल अर्पित करते हैं। कहा जाता है, कि इस दिन सभी बंगाली दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।
Kumari Pooja
पूजा का यह रूप भी संपूर्ण बंगाल में काफी प्रसिद्द है। कुमारी पूजा में 1 से 16 वर्ष की बालिकाओ को देवी रूप मानकर पूजा की जाती है।
Sandhya Aarti
संगीत, ढोल, घंटियों और नाच गाने के बीच सांधा आरती की रसम पूरी की जाती है। यह नौ दिनों तक चलने वाले त्योहार के दौरान रोज शाम को की जाती है।
Sindur Khela
पूजा के आखिरी दिन महिलाएं सिंदूर खेला खेलती हैं। इसमें वह एक दूसरे पर सिंदूर से एक दूसरे को रंग लगाती हैं, और इसी के साथ अंत होता है। इस पूरे उत्सव का।