वर्तनाम समय में गणेश उत्सव से सभी भली भाती परिचित है। दस दिनों तक मनाये जाने वाले इस उत्सव का आरम्भ गणेश चतुर्थी  के दिन होता है।

महाराष्ट्र में भगवान गणेश और गणेश चतुर्थी से प्रारम्भ होने वाले उत्सव का विशेष महत्त्व है। अतः यहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने घर में यथा संभव गणपति स्थापना अवश्य करता है।

History

गणेश चतुर्थी जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। जो भगवान श्री गणेश के अपनी मां देवी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर आने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

प्रारम्भिक ज्ञात स्रोतों के आधार पर यह त्योहार सार्वजनिक रूप से पुणे में शिवाजी महाराज के युग 1630 -1690 के समय से मनाया जाता रहा है।

18 वीं शताब्दी में पेशवा शासक गणेश के भक्त थे, और भाद्रपद के महीने के दौरान अपनी राजधानी पुणे में एक सार्वजनिक गणेश उत्सव मनाना इन्होने शुरू किया।

पहले इस त्यौहार को निजी तौर पर घरों में ही मनाया जाता था। सार्वजनिक रूप से मनाने की प्रथा की शुरुआत श्री बाल गंगाधर तिलक द्वारा गणेश भगवान की मूर्तियों की स्थापना के साथ किया गया था।

Hindu belief

प्राचीन वैदिक ग्रंथों जैसे गृह सूत्र और उसके बाद प्राचीन संस्कृत ग्रंथों जैसे वाजसनेयी संहिता, याज्ञवल्क्य स्मृति और महाभारत में गणपति को गणेश्वर और विनायक के रूप में वर्णित किया गया है।

गणपति या गणेश भगवान के स्वरूप का पहला लिखित उल्लेख हमको ऋग्वेद में मिलता है। यह उल्लेख ऋग्वेद में दो बार किया गया है।

कई ग्रंथों में गणेश भगवान मध्ययुगीन पुराणों में “सफलता के देवता, बाधा निवारक” के रूप में प्रकट होते हैं। स्कंद पुराण, नारद पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण उनकी बहुत प्रशंसा करते हैं।

भारतीय समाज में प्रत्येक शुभ कार्य के शुभारंभ से पहले भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है।

गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म में समृद्धि और ज्ञान के देवता, हाथी के सिर वाले गणेश के आने के नौ दिवसीय उत्सव के रूप में मनाते है, जो भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

Celebration

यह त्यौहार 10 दिनों का उत्सव होता है जिसे घरों, मंदिरों और अस्थायी रूप से बने मंच या पंडालों में भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति की स्थापना द्वारा शुरू किया जाता है।