ऐसा माना जाता है कि जन्माष्टमी के शुभ दिन भगवान विष्णु ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। कंस के अत्याचारों से अपनी प्रजा को न्याय दिलाने के लिए भगवान ने मानव अवतार लिया।

भारत के हिन्दू मान्यता में विश्वास करने वाले इस उत्सव को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

जन्माष्टमी के संस्कार

जन्माष्टमी का उत्सव के दौरान भक्तगण कुछ नियमों का पालन सालों-साल से करते आ रहे हैं। इनका पालन करना ये लोग अपना परम् कर्तव्य समझते हैं।

उपवास रखना

जन्माष्टमी के दिन सभी कृष्ण भक्त सुबह से मध्यरात्रि कृष्ण जन्म के समय तक पूरी भक्ति एवं श्रद्धा से उपवास रखते है।

अर्धरात्रि में बाल-गोपाल का पूजन

इस दिन आधी रत को कृष्ण जन्म के मुहूर्त अनुसार समय होने पर सभी भक्त या तो मंदिरों में सार्वजनिक रूप से या अपने निज स्थानों पर बल गोपाल की पूजा करते हैं।

कृष्ण मंदिर के दर्शन करना

इसी कारण इस दिन सभी जगह कृष्ण जी के मंदिरों को सजाया जाता है। इनकी भव्यता इस दौरान देखते ही बनती है।

जन्माष्टमी पूजन विधि

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूरे संसार में जहाँ भी उनके भक्त है उनके द्वारा भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की आराधना की जाती है।

उनके बाल स्वरूप के रूप में बाल गोपाल की चांदी, तांबा, पीतल, वृक्ष, मिट्टी या चित्ररूप की मूर्ति पूजा के लिए स्थापित की जाती हैं।

इतिहास एवं महत्व

हिंदू ग्रंथों के अनुसार भगवान कृष्ण इस दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार और बुराई के विनाशक के रूप में इस दुनिया में अवतरित हुए थे।

भगवद गीता एवं भागवत पुराण सहित प्राचीन हिंदू साहित्य स्पष्ट रूप से भगवान कृष्ण के जन्म की कहानी बताते हैं कि उनके मामा, राजा कंस उन्हें कैसे मारना चाहते थे।

किस प्रकार श्री कृष्ण का जन्म तमाम बाधाओं को एक तरफ़ा करते हुए मथुरा के कारागार में हुआ तथा किस प्रकर उनके पिता वासुदेव ने उनको नन्द एवं यशोदा के घर तक पहुँचाया।

उफनती यमुना नदी को पार करते हुए वासुदेव कृष्ण को नन्द एवं यशोदा के द्वार तक पहुँचाने गए, ताकि उनको कंस के क्रोध से बचाया जा सके।

भगवद-गीता के श्लोक में कहा गया हैं, कि जब भी बुराई की प्रधानता होगी एवं धर्म का पतन होगा, मैं बुराई को मारने और अच्छे को बचाने के लिए अवतार लूंगा।