हिन्दू धर्म में शक्ति को स्त्री रूप माना गया है। इसी देवीय शक्ति की उपासना कर शक्ति प्राप्त करने का महापर्व ही नवरात्री कहलाता है।

हिन्दू मान्यता के अनुसार शिव को आदि पुरुष के रूप में पूजा जाता है। उनको रचियता और सहारक दोनों रुपो में पूजा जाता है, और उनकी शक्ति के रूप को देवी के रूप में पूजा जाता है।

साल में ननवरात्री का त्यौहार 4 बार आता है। इनको हम जिन नामों से जानते है वो है – माघी , आषाढ़ , शारदीय और चैत्र नवरात्री।

माघी और आषाढ़ नवरात्री को गुप्त नवरात्री भी कहा। ये दोनों गुप्त नवरात्री में विशेष सिद्धियों की प्राप्ति की गुप्त रूप से पूजा अर्चना की जाती है।

इनको सामूहिक रूप से नहीं मनाया जाता। वही शारदीय और चैत्र नवरात्री का उत्सव बहुत ही धूम धाम और सामूहिक रूप से मनाया जाता है।

मघा नवरात्री

ये सर्दियों में जनवरी से फरवरी के बीचआती है। जिसके दौरान ही पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। जिसका बंगाली समाज में बहुत महत्व होता है।

आषाढ़ नवरात्री

ये वर्षा ऋतू में आती है। इसको गुप्त नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। इसमें देवी के नौ रूपों को अलग अलग सिद्धियों की प्राप्ति के लिए पूजा जाता है।

शारदीय नवरात्री

ये सबसे प्रमुखता से मनाये जाने वाले देवी के नौ दिन होते है। यह लगभग संपूर्ण भारत के सभी प्रदेशो में प्रखर रूप से मनाया जाता है।

चैत्र नवरात्री

शारदीय नवरात्री के बाद हिंदी भाषी प्रदेशो में यह नवरात्री अधिक महत्त्व रखती है। आज हम इसी के बारे में बात करेंगे।

इस समय में देवी के इन्ही नौ रूपों की विशेष पूजा अर्चना उनको प्रसन्न करने के लिए की जाती है, जिससे साधक को देवी की सभी शक्तियों का अंश प्राप्त हो सके।

नवरात्री |का उत्सव हम नौ दिनों तक मनाते है जिसका असली अर्थ होता है , हर तरह की बुराई पर विजय क्योंकि नवरात्री के अगले दिन हम दशहरे के रूप में रावण का वध करके मनाते है।

चैत्र नवरात्री की समाप्ति के अगले दिन को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है वही शारदीय नवरात्री की समाप्ति के अगले दिन दशहरे के रूप में मनाया जाता है।